Saturday, February 12, 2011

लोग घर छोड़ कर जाते हैं और तमाम ज़िन्दगी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में काट देते हैं। जाने कैसे? मेरे ९५% के लगभग जानने वाले बारहवी जमात के बाद जो घर से निकले तो फिर वापस पलट कर न आ सकें। मुझे भी घर छोड़े तकरीबन साढ़े सात बरस हो गए हैं लेकिन आज भी अक्सर आँख लगती है और मैं वापस इलाहाबाद की गलियों में घूमने लगती हूँ। बचपन एक साये की तरह सर पर घूमता है और लड़कपन फ़िर अंगड़ाई लेने लगता है। पिछला दशक कहीं तो खो जाता है और मैं फिर वही १९ साल की किशोरी बन जाती हूँ, अपनी ४ साल की बेटी, ५ साल की शादी, ७ साल की नौकरी, रुपया- पैसा, आर्थिक उत्थान, सामाजिक उन्नति और आत्मिक पतन सब भूल कर अपने पैतृक गृह की छत पर खड़ी हो जाती हूँ, बादलों को देखती और उनके फूटने का इंतज़ार करती। ज़िन्दगी बहुत आगे बढ़ गयी है, शायद इतनी तेज़ी से कि मेरा सुस्त दिमाग़ उसके साथ कदम नहीं मिला पाया, उसकी तरक्की को रजिस्टर ही नहीं कर पाया। ऐसा लगता है की मेरी काया तो साथ आई लेकिन आत्मा वहीँ जम गयी और पीछे ही कहीं छूट गयी है। कितनी ही बार होता है कि सो कर उठती हूँ और बिलकुल भौचक्की हो जाती हूँ कि कहाँ हूँ और यहाँ कैसे पहुंच गयी। आज भी ऐसा ही हुआ, और इस हद तक कि फ़िर से आँखें मूंदने में डर लगने लगा। हम जल्दी ही इस शहर से भी जाने वाले हैं, और मेरी सबसे बड़ी चिंता यहीं है कि फ़िर से दिमाग़ को रिसेट कैसे करूंगी।

2 comments:

wafter said...

yahi zindagi hai. maine pichle 8 saal mein har saal ghar badla hai - . 2 desh - india & US, 6 states - kerala, karnataka, NC, MA, NY , NJ mein kaam kiya / padha hoon . 3 types of visa...etc.. I am tired !!! I envy the previous generation who have lived in one house and have spent their lives in one job....

Violet said...

Your case sure sounds intimidating! On the flip-side, I think it builds character and experience. You would know so much more about the world than me, and probably not be as afraid of change as me.. mujhe to ghar chhodne ke khayal se hi dar lagta hai. I feel stuck in a time-warp and would so like to be part of the previous generation.